विकास बनाम मानव का भविष्य(चरण ३)
समीक्षक पर्यवेक्षक अगले दिनों की विभीषिका का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार करते हैं जिसमें वर्तमान की अवांछनीय और भविष्य की अशुभ संभावनाएं ही उभर कर सामने आती हैं ।ऐसी दशा में हताशा का निषेधात्मक वातावरण बनना स्वाभाविक ही है। निराश मन: स्थिति अपने आप में इतनी बड़ी विपदा है जिसके रहते व्यक्ति समर्थ होते हुए भी उज्जवल भविष्य की संरचना हेतु कुछ कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उत्साह ,उल्लास में कमी पड़ती है तथा मनोबल गिरता है ।
हौसले बुलंद हो तो प्रतियोगिताओं के बीच भी थोड़े से व्यक्ति मिलकर इतना कुछ कर सकते हैं जिसे देखकर आश्चर्यचकित रहा जा सकता है। मानवीय पराक्रम, भविष्य को बदल देने की उसकी सामर्थ्य ,मनुष्य को प्राप्त ऐसी विभूति है जिस पर विश्वास किया जा सके तो यह मान कर चलना चाहिए कि निराशा के वातावरण में भी आशा का उज्जवल भविष्य की संभावनाओं का उद्भव हो सकता है ।भविष्य कथन विज्ञान सम्मत है या नहीं इस पर कभी विवाद रहा होगा किंतु अब स्वयं भौतिक वि्ञानी कहने लगे हैं कि भविष्य कैसा होगा इसको काफी पूर्व जाना जा सकता है तदनुसार अपने क्रियाकलापों का संयोजन कर सकना भी संभव है ।ये भी संभव है कि आने वाला समय कैसा होगा रचनात्मक दिशा में सोचते हुए कहते हैं कि भविष्य निश्चित ही उज्जवल है क्योंकि आधुनिकता की दौड़ में हताश मानव जाति पूरी गंभीरता से उन प्रयोजनों में जुट रही है जो नवयुग के अरुणोदय का संकेत देते है। क्यूकी संपूर्ण मानव जाति को आशावादी होना ही होगा तभी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित जीवन स्वप्न को संजो सकती है।
क्रमशः.......
Niraj Pandey
11-Oct-2021 08:02 PM
वाह बेहतरीन
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Miss Lipsa
01-Oct-2021 08:16 PM
Wow
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Seema Priyadarshini sahay
30-Sep-2021 11:57 AM
बहुत खूबसूरत
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